बड़ी बेरहम होती है वो रात बरसात की
जो बरसती है मुफ़लिस के टूटे छप्पर पर
जो न सुहाती है किसी मुसाफिर को कभी
बढ़ाती है दर्द जो इश्क़ में टूटे हुए दिलों का
पूँछ के देखो कभी हालात उस बेघर परिंदे से
बड़ी मनहूस होती है वो रात बरसात की।
अरमान होती है किसी का बरसात की रात
जैसे यौवन में नहाई हो युवना कोई अल्हड़ सी
जगाती है किसी के दिल के अरमान कई सोये
किसी के तन में लगाती है आग ये बूंदे पानी की
प्रियतम की दूरी में डसती नागिन सी है ये
चुभती सी है ये बड़ी बेरहम रात बरसात की
रात एक सी वो बरसात की पर किस्से कई हज़ार
किसी के लिए अमृत सी है किसी के लिए ज़हर सी
कोई जागे सारी रात टपकती छत के नीचे बैठा
कोई न सोये बरसात की रात में है जाम में डूबा
किसी की तन्हाई का किसी की मुफ़लिसी का
बनाती मज़ाक मस्ती में डूबी इतराती, इठलाती
बड़ी बेरहम होती है वो रात बरसात की।
★★★
प्राची मिश्रा